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प्राणायाम में उपयोगी बंधत्रय | Useful Bandhatraya in Pranayama

प्राणायाम में उपयोगी बंधत्रय

योगासन, प्राणायाम एवं बंधों के द्वारा हमारे शरीर से जिस शक्ति का बर्हिगमन होता है, उसे हम रोककर अंतर्मुखी करते हैं। बंध का अर्थ ही है बाॅधना, रोकना। ये बंध प्राणायाम में अत्यंत सहायक हैं। बिना बंध के प्राणायाम अधूरे हैं। इन बंधों का क्रमशः वर्णन यहाँ किया जा रहा है।

  1. जालन्धर-बंध
  2. उड्डीयना-बंध
  3. मुलबंध
  4. महाबंध:

जालन्धर-बंध: (Jalandhar Band)

सिद्धासन में सीधे बैठकर श्वास को अंदर भर लें। दोनों हाथ घुटनों पर टिके हुए हों। अब ठोडी को थोड़ा नीचे झुकाते हए कण्ठकूप में लगाना ‘जालन्धर बंध ’ कहलाता है। दृष्टि को भ्रमध्य में स्थिर करे। छाती आगे की ओर तनी हुई होगी। यह बंध कण्ठस्थान के नाड़ी-जाल को बाँधे रखता है।

जालन्धर-बंध के लाभ: (Benefits of Jalandhar Band)

  • कण्ठ मधुर, सुरीला और आकर्षक होता है।
  • कण्ठ के संकोच द्वारा इड़ा, पिंगला नाड़ियों के बंद होने पर प्राण का सुषुुम्णा में प्रवेश होता है।
  • गले के सभी रोगों में लाभप्रद है। थाॅयरायड, टाॅन्सिल आदि रोगों में अभ्यसनीय है।
  • विशुद्धि-चक्र की जागृति करता है।

उड्डीयना-बंध: (Udiyan Bandh)

जिस क्रिया से प्राण उठकर, उत्थित होकर सुषुम्णा में प्रविष्ट हो जाये, उसे ‘उड्डीयान बंध ’ कहते हैं। खड़े होकर दोनो हाथों को सहज भाव से दोनों घुटनों पर रखिए। श्वास बाहर निकालकर पेट के ढीला छोड़े। जालन्धर-बंध लगाते हुए छाती को थोड़ा ऊपर की ओर उठायें। पेट को कमर से लगा दें। यथाशक्ति करने के पश्चात् पुनः श्वास लेकर पूर्ववत् दोहरायें। प्रारंभ में तीन बार करना पर्याप्त है। धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाना चाहिए।

इसी प्रकार सिद्धासन में बैठकर भी इस बंध को लगायें।

उड्डीयना-बंध के लाभ: (Benefits of udiyan band)

  • पेट-संबंधी समस्त रोगों को दूर करता है।
  • प्राणों को जागृत कर मणिपुर-चक्र का शोधन करता है।

मुलबंध: (Mulband)

सिद्धासन में बैठकर बाह्य या आभ्यन्तर कुम्भक करते हुए, गुदाभाग एवं मूत्रेन्द्रिय को ऊपर की ओर आकर्षित करें। इस बंध में नाभि के नीचेवाला हिस्सा खिंच जायेगा। यह बंध बाह्यकुम्भक के साथ लगाने में सुविधा रहती है। वैसे योगाभ्यासी साधक इसे कई-कई घण्टों तक सहजावस्था में भी लगाये रखते है। दीर्घ अभ्यास किसी के सान्निध्य में करना उचित है।

मुलबंध के लाभ: (Benefits of Mulbandh)

  • इससे अपान वायु का ऊध्र्वगमन होकर प्राण के साथ एकता होती है। इस प्रकार यह बंध मूलाधार चक्र को जागृत करता है और कुण्डलिनी-जागरण में अत्यंत सहायक है।
  • कोष्ठबद्धता और बवासीर को दूर करने तथा उठराग्नि को तेज करने के लिए यह बंध अति अत्तम हैै।
  • वीर्य के ‘ऊध्वरेतम््’ बनाता है, अतः ब्रह्यचर्य के लिए यह बंध महत्वूपर्ण है।

महाबंध: (Mahaband)

सिद्धासन आदि किसी भी एक ध्यानात्मक आसन मेें बैठकर तीनों बंधों को एक साथ लगाना ‘महाबंध ’ कहलाता है। इससे वे सभी लाभ मिल जाते है, जो पूर्वनिर्दिष्ट हैं। कुंभक में ये तीनों बंध लगते हैं।

महाबंध के लाभ: (benefits of Maha)

  • प्राण ऊध्र्वगामी होता है।
  • वीर्य की शुद्धि और बल की वृद्धि होती है।
  • महाबंध से इड़ा, पिंगला और सुषुम्णा का संगम प्राप्त होता है।
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