प्राणायाम हेतु कुछ निमय (Some Rules for Pranayam)

  • प्राणायाम शुद्ध सात्त्विक निर्मल स्थान पर करना चाहिए। यदि संभव हो तो जल के समीप बैठकर अभ्यास करें।
  • शहरों में जहां प्रदूषण का अधिक प्रभाव होता है, उस स्थान को प्राणायाम से पहले घृत एवं गुग्गुल द्वारा सुगन्धित कर लें। अधिक नहीं कर सकते, तो घी का दीपक जलायें।
  • प्राणायाम के लिए सिद्धासन, वज्रासन या पद्यासन में बैठना उपयुक्त है। बैठन के लिए जिस आसन का प्रयोग करते हैं, वह विद्यृत् का कुचालक होना चाहिए। यथा कम्बल या कुशासन आदि।
  • श्वास सदा नासिका से ही लेना चाहिए। इससे श्वास फिल्टर होकर अंदर जाता है। दिन में भी श्वास नासिका से ही लेना चाहिए। इससे शरीर का तापमान भी इड़ा, पिंगला नाड़ी के द्वारा सुव्यवस्थित रहता है ओर विजातीय तत्व नास-छिद्रों में ही रूक जाते हैं।
  • योगासन की तरह प्राणायाम करने के लिए कम से कम चार-पांच घण्टे पूर्व
  • भोजन कर लेना चाहिए। प्रातःकाल शौचादि से निवृत होकर योगासनों से पूर्व प्राणायाम करें तो सर्वोंतम है। शुरू मे 5-10 मिनट ही अभ्यास करें तथा धीरें-धीरें बढ़ाते हुए आधा से एक घण्टे तक करना चाहिए। हमेशा नियत संख्या मंे करें। कम या ज्यादा न करें। यदि प्रातः उठकर पेट साफ नहीं होता है तो रात्रि में सोने से पहले हरड़-चूर्ण या त्रिफला-चूर्ण गरम पानी से ले लंे। कुछ दिन ‘कपालभाति‘ प्राणायाम करने से कब्ज भी स्वतः दूर हो जाता है।
  • प्राणायाम करते समय मन शांत एवं प्रसन्न होना चाहिए। वैसे प्राणायाम से भी मन शांत, प्रसन्न तथा एकाग्र होता हैै।
  • प्राणायामों को, अपनी-अपनी प्रकृति और ऋतृ के अनुकूल करना चाहिए। कुछ प्राणायामांे से शरीर में गरमी बढ़ती है तो कुछ से ठण्डक सामान्य होती है।
  • प्राणाायाम करते हुए थकान अनुभव हो तो दूसरा प्राणायाम करने से पूर्व 5-6 सामान्य दीर्घ श्वास लेकर विश्राम कर लेना चाहिए।
  • गर्भवती महिला, भूख से पीड़ित, ज्वररोगी एवं अजितेन्द्रिय पुरूष को प्राणायाम नहीं करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को प्राणायाम के साथ दी गई सावधानी का ध्यान रखते हुए प्राणायाम करना चाहिए।
  • प्राणायाम के दीर्घ अभ्यास के लिए ब्रह्मचार्य का पालन करें। भोजन सात्त्विक एवं चिकनाई-युक्त हो। दूध घृत एवं फलांे का प्रयोग हितकर है।
  • प्राणायाम में श्वास को हठपूर्वक नहीं रोकना चाहिए। प्राणायाम करने के लिए श्वास अंदर लेना ‘ पूरक ’, श्वास को अंदर रोककर रखना ‘कुंभक’, श्वास का बाहर निकालना ‘रेचक’ और श्वास को बाहर ही रोक कर रखने को ‘बह्मकुम्भक’ कहते हंै।
  • प्राणायाम का अर्थ सिर्फ पूरक, कुम्भक एवं रोचक ही नहीं, वरन् श्वास और प्राणों की गति को नियंत्रित और संतुलित करते हुए मन को भी स्थिर एवं एकाग्र करने का अभ्यास करना है।
  • प्राणायाम से पूर्व कई बार ‘ओ3म्’ का लम्बा नादपूर्ण उच्चारण करना, और भजन-कीर्तन करना उचित है। ऐसा करने से मन शान्त एवं एकाग्र हो जाता है। प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए मन का शान्त और विचार-रहित होना बहुत आवश्यक है। प्राणायाम करते समय गायत्री,प्रणव (ओ3म्) का जाप करना आध्यात्मिक रूप से विशेष गुणकारी है।
  • प्राणायाम करते समय मुख, आंख नाक आदि अंगों पर किसी प्रकार तनाव न लाकर सहजावस्था में रखना चाहिए। प्राणायाम के अभ्यास-काल में ग्रीवा, मेरूदण्ड, वक्ष कटि को सदा सीधा रखकर बैठें, तभी अभ्यास यथाविधि तथा फलप्रद होगा।
  • प्राणायाम का अभ्यास धीरे-धीरे बिना किसी उतावली के , धैर्य के साथ, सावधानी से करना चाहिए।

यथा सिंहो गजो व्याघ्रो भवेद् वश्यः शनैः शनैः।
तथैव वश्यते वायुः अन्यथा हन्ति साधकम्।।

सिंह, हाथी या बाघ जैसे हिंसक जंगली प्राणियों को बहुत धीरे-धीरे अति सावधानी से वश में किया जाता है। उतावली करने से ये प्राणी हमला कर प्रशिक्षक की हानि भी कर सकते हैं। इसी प्रकार प्राणायाम को धीरे-धीरे बढ़ाते रहना चाहिए।

प्राणायाम यथासंभव स्नानादि से निवृत होकर ध्यान-उपासना से पूर्व करना चाहिए। प्राणायाम के पश्चात यदि स्नान करना हो तो , 15-20मिनट बाद कर सकते है। स्वयं पुस्तकें पढ़कर देखा-देखी कदापि अभ्यास न करेें अनुभवी आचार्य के मार्गदर्शन मेें, उनकी देखरेख में प्राणायामों, आसनों मुद्राआंे आदि की शिक्षा लें।

सभी प्रकार के प्राणायामों के अभ्यास से पूर्ण लाभ उठाने के लिए गीता का निम्नांकित श्लोक कण्ठस्थ करके स्मरण करते हुए व्यवहार में लायें:

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्रावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।

अर्थात्: जिस व्यक्ति का आहार-विहार ठीक नहीं है, जिस व्यक्ति की सांसरिक कार्यों के करने की निश्चित दिनचर्या नहीं है और जिस व्यक्ति के सोने-जागने का समय भी निश्चित नहीं है, ऐसा व्यक्ति यदि योग करने का दम्भ करता है, तो उसे योग का कोई लाभ नहीं मिल सकता, वह योग करके भी दुःखी रहता है।

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