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दुर्गा सप्तशती पाठ माँ दुर्गा की महिमा, वध कथा और दुर्गा सप्तशती के चमत्कारी मंत्र

जब जब इस धरती पर पाप असहनीय हो जाता है तब तब देवी देवता के अवतरण के रूप में कोई महा शक्ति इस धरती पर अवतार लेकर उस पाप का नाश करती है | महाशक्तिशाली और इच्चापुरक काव्य दुर्गा सप्तसती से जानते है की किस तरह माँ दुर्गा का जन्म हुआ और किस तरह उन्होंने बार बार पृथ्वी पर दैत्यों के पाप को ख़त्म किया | दुर्गा सप्तशती पाठ में माँ जगदम्बे की महिमा का अनुपम तरीके से वर्णित किया गया है |

दुर्गा सप्तशती पाठ का महत्व

माँ भगवती की महिमा का गान करने वाले यह धर्म सरिता अपने अन्दर सभी सुखो को पाने के महा गुप्त साधना समेटे हुए है | तांत्रिक साधना , गुप्त साधना मन्त्र साधना और अन्य प्रकार के आराधना के पथ कको सुचारू रूप से बताती है | इस काव्य का पाठ विशेष रूप से नवरात्रों में किया जाता है और अचूक फल देने वाला होता है | दूर्गा सप्तशती पाठ में १३ अध्याय है | पाठ करने वाला , पाठ सुनने वाला सभी देवी कृपा के पात्र बनते है | नवरात्रि में नव दुर्गा की पूजा के लिए यह सर्वोपरि किताब है | इसमे माँ दुर्गा के द्वारा लिए गये अवतारों की भी जानकारी प्राप्त होती है |

दूर्गा सप्तशती अध्याय 1मधु कैटभ वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 2देवताओ के तेज से माँ दुर्गा का अवतरण और
महिषासुर सेना का वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 3महिषासुर और उसके सेनापति का वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 4इन्द्राणी देवताओ के द्वारा माँ की स्तुति
दूर्गा सप्तशती अध्याय 5देवताओ के द्वारा माँ की स्तुति और
चन्द मुंड द्वारा शुम्भ के सामने देवी की सुन्दरता का वर्तांत
दूर्गा सप्तशती अध्याय 6धूम्रलोचन वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 7चण्ड मुण्ड वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 8रक्तबीज वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 9 -10निशुम्भ शुम्भ वध
दूर्गा सप्तशती अध्याय 11देवताओ द्वारा देवी की स्तुति और देवी के द्वारा देवताओ को वरदान
दूर्गा सप्तशती अध्याय 12देवी चरित्र के पाठ की महिमा और फल
दूर्गा सप्तशती अध्याय 13सुरथ और वैश्यको देवी का वरदान

दुर्गा सप्तशती के चमत्कारी मंत्र

माँ दुर्गा की महिमा का पान कराने वाली किताब दुर्गा सप्तशती माँ के भक्तो के लिए ज्ञान गंगा के समान है | इस किताब के अंत में माँ दुर्गा के २० से ज्यादा चमत्कारी मंत्र अलग अलग प्रयोजन के लिए दिए गये है | इस मंत्रो के जाप से आप हर तरह की प्रसन्नता पा सकते है | आइये कुछ मुख्य मंत्र इस किताब से जाने |

आपत्त्ति से निकलने के लिए
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तु ते ॥

भय का नाश करने के लिए
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिमन्विते ।
भये भ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमो स्तु ते ॥

जीवन के पापो को नाश करने के लिए
हिनस्ति दैत्येजंसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥

बीमारी महामारी से बचाव के लिए
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥

पुत्र रत्न प्राप्त करने के लिए
देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥

इच्छित फल प्राप्ति

एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः

महामारी के नाश के लिए
जयन्ती मड्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमो स्तु ते ॥

शक्ति और बल प्राप्ति के लिये
सृष्टि स्तिथि विनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रेय गुणमये नारायणि नमो स्तु ते ॥

इच्छित पति प्राप्ति के लिये
ॐ कात्यायनि महामाये महायेगिन्यधीश्वरि ।
नन्दगोपसुते देवि पतिं मे कुरु ते नमः ॥

इच्छित पत्नी प्राप्ति के लिये
पत्नीं मनोरामां देहि मनोववृत्तानुसारिणीम् ।
तारिणीं दुर्गसंसार-सागरस्य कुलोभ्दवाम् ॥

मधु कैटभ वध कथा

दुर्गा सप्तसती के प्रथम अध्याय में महर्षि मेधा ने राजा सुरथ को योगमाया की माया के प्रभाव से मधु कैतभ के वध की कथा सुनाई |

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कथा इस तरह है की एक बार भगवान् विष्णु क्षीर सागर शेषशैया पर योगनिद्रा में थे । सम्पूर्ण संसार जल विलीन हो चूका था । तब मधु कैटभ नामक दो दैत्य श्री हरि के कर्ण के मैल से प्रकट हुए । वे बड़े बलशाली और भीमाकार थे | बाहर आते ही उनकी नजर ब्रह्मा जी पर पड़ी जो श्री विष्णु के नाभि कमल पर विराजमान थे । ब्रह्मा जी जानते थे कि इन दोनों महाबलवान दैत्यों से सिर्फ विष्णु जी ही मुझे बचा सकते हैं । उन्हें अपने प्राण बचाने के लिए गहरी निद्रा में योगमाया के प्रभाव में सोये हुए हरि को जगाना जरुरी था | इसके साथ साथ सम्पूर्ण जगत को चलाने वाली योगमाया की माया मधु कैतभ पर भी असर करवानी थी अत: उन्होंने मन ही मन विष्णु जी की आँखों में बसने वाली योगनिद्रा से प्रार्थना शुरू कर दी |

ब्रह्मा जी की विनती पर अव्यक्तजन्मा उनके समक्ष खड़ी हो गयी | इसी के साथ योगमाया के नेत्रों से आ जाने पर भगवान विष्णु शय्या से जग उठे | श्री हरि ने उनसे 5000 वर्षो से बाहूयुद्ध किया | तब महामाया ने मधु कैतभ को अपने योग माया में कैद कर लिया | इसी माया के प्रभाव से उन दोनों दानवो ने विष्णु से कोई भी वर मांगने की बात कही | भगवान विष्णु ने उनके प्राण मांग लिए | मधु कैतभ ने प्रभु से कहा की जिस जगह जल न हो वही हम्हारा वध करो | तब श्री हरि ने अपनी जाँघों पर लेकर उनका वध किया ।

इस तरह महामाया ने बिना युद्ध लिए सिर्फ अपनी माया से मधु कैतभ के वध होने में मुख्य भूमिका निभाई |

दुर्गा माँ द्वारा महिषासुर वध कथा

रम्भासुर नामक दैत्य का महिषासुर नामक पुत्र था, जिसने घोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया, और उनसे वरदान पाया की वो सिर्फ सिर्फ एक स्त्री के ही हाथों से मारा जा सके । ना ही कोई देवता ना ही सुर ना ही असुर न ही मानव उसे मार सके | वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग के साथ साथ तीनो लोको को जीत लिया । देवता ब्रह्मा जी और विष्णु जी सहित शिव जी के पास आये और अपनी दुःख भरी वेदना सुनाई | यह सुनकर त्रिदेव क्रोध में भर गये | ।

शिव के क्रोधित मुखमंडल से एक तेज निकला, और तब ब्रह्मा जी और विष्णु जी सहित सब देवताओं से तेज उत्पन्न हुआ, जिसने स्त्री वेश धारण किया , जो दुर्गा देवी थीं । देवताओं ने अति हर्षित हो कर उन महाकाली को आयुध एवं आभूषण आदि प्रदान किये । शिव जी ने उन्हें अपना त्रिशूल दिया, विष्णु जी ने चक्र तो इंद्र ने वज्र । इस तरह समस्त देवताओ ने अपना शस्त्र और तेज से दुर्गा माँ को अनुपम और महा शक्तिया प्रदान की |

आयुध व् आभूषणों से सुसज्जित चंडिका ने जोरदार अट्टहास किया जिसकी गर्जना सुन महिषासुर अपनी सेना ले युद्ध करने पहुंचा । राक्षसों ने अपने शक्तिशाली अस्त्र शस्त्र चलाने आरम्भ किये जो माँ के सामने तुच्छ तिनके के समान साबित हुए | माँ जगदम्बे जी सवारी सिंह गरज गरज कर सब और असुरों को मारने लगा और युद्ध का मैदान लहू लुहान हो गया । देवी और उनके सिंह से देखते ही देखते दैत्यों का संहार कर दिया | महिषासुर के दैत्य सेनापति भी मारे जा चुके थे ।

इस बीच महिषासुर ने अनेको मायावी रूप बनाकर माँ के साथ युद्ध किया पर हर बार उसके हाथ हार ही लगी | कभी वो भैस कभी हाथी तो कभी सिंह बनके देवी से लड़ने लगा | इस बार फिर अपने मुख्य रूप भैस के रूप में असुर में तब्दील हुआ पर इस बार देवी ने उसके गर्दन पर त्रिशूल से वार करके उसका अंत कर दिया | इस तरह माँ भगवती महिषासुर मर्दिनी कहलाई |

बची हुई असुर सेना भाग गयी या मारी गयी और देवताओं गन्धर्वों ने देवी की विनयपूर्वक महादुर्गा जी की स्तुति की और कई वरदान प्राप्त किये ।

  • जय हो महिषासुर मर्दिनी की
  • जय हो शेरो वाली की

धूम्रलोचन वध की कथा

शुम्भ और निशुम्भ दैत्यों के राजा का सेनापति धूम्रलोचन था . Dhumralochan Killing by Goddessहिमालय पर हुंकार भर रही महा सुंदरी देवी ने जब शुम्भ से विवाह का प्रस्ताव ठुकरा दिया तब धूम्रलोचन को कहा गया की उस देवी के केश पकड़कर घसीटते हुए लाया जाये और यदि इस बीच कोई भी देवता, यक्ष या गंधर्व बाधा बने तो उन्हें मार दिया जाये |

आज्ञा पाकर धूम्रलोचन साठ हजार राक्षसों की सेना लेकर वहां पहुंचा और देवी को ललकारने लगा की तुम सीधे सीधे मेरे साथ चलो अन्यथा मैं तुम्हे केश पकड़ कर घसीटता हुआ ले चलूंगा | देवी ने कहा आगे बढ़ो और अपना बल दिखाओ | जैसे ही अहंकार में भरा धूम्रलोचन देवी की तरफ बढ़ा , देवी ने हुंकार भरी और पल में ही उसे भस्म कर दिया |

अपने सेनापति की इस तरह दुर्दशा देखर असुर सेना ने एक साथ देवी पर आक्रमण किया | तब देवी की सवारी सिंह असुर सेना पर टूट पड़ा और साथ ही साथ देवी के बाणों और फरसों से देखते ही देखते सम्पूर्ण सेना का संहार कर दिया |

इस तरह माँ ने पर धूम्रलोचन और उसके ६०००० असुर सैनिको का वध किया |

चण्ड मुण्ड वध और जाने कौन है चामुण्डा देवी ?

दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो , देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया। महादेवी की भृकुटी के तेज से उत्पन्न कालिका देवी उत्पन्न हुई और उन्होंने उन दैत्यों का संहार करके जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें काली को वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुण्डा देवी के नाम से विख्यात हो जाओगी। मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं।

देवी काली का अवतरण और रक्तबीज वध की कथा

दुर्गा सप्तसती अध्याय आठ :

रक्तबीज एक ऐसा दानव था जिसे यह वरदान था की जब जब उसके लहू की बूंद इस धरती पर गिरेगी तब तब हर बूंद से एक नया रक्तबीज जन्म ले लेगा जो बल , शरीर और रूप से मुख्य रक्तबीज के समान ही होगा |

अत: जब भी इस दानव को अस्त्रों ,शस्त्रों से मारने की कोशिश की जाती , उसके लहू की बूंदों से अनेको रक्तबीज पुनः जीवित हो जाते | रक्तबीज दैत्यराज शुम्भ और निशुम्भ का मुख्य सेनानायक था और उनकी सेना का माँ भगवती के विरुद्ध प्रतिनिधित्व कर रहा था |

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शिव के तेज से प्रकट माहेश्वरी देवी , विष्णु के तेज से प्रकट वैष्णवी , बह्रमा के तेज से बह्रमाणी भगवती के साथ मिलकर दैत्यों से युद्ध कर रही थी | जब भी कोई देवी रक्तबीज पर प्रहार करती उसकी रक्त की बूंदों से अनेको रक्तबीज पुनः जीवित हो उठते | तब देवी चण्डिका ने काली माँ को अपने क्रोध से अवतरित किया | माँ काली विकराल क्रोध वाली और उनका रूप ऐसा था की काल भी उन्हें देख कर डर जाये |

देवी ने से कहा की तुम इस असुर की हर बूंद का पान कर जाओ जिससे की कोई अन्य रक्तबीज उत्पन्न ना हो सके | ऐसा सुनकर माँ काली ने रक्तबीज की गर्दन काटकर उसे खप्पर मे रख लिया ताकि रक्त की बूँद नीचे ना गिरे और उसका सारा खून पी गयी , बिना एक बूँद नीचे गिरे | जो भी दानव रक्त से उनकी जिह्वा पर उत्पन्न होते गए उनको खाती गई | इस तरह अंत हुआ रक्तबीज और उसके खून का |

कथा शुम्भ और निशुम्भ का वध

दुर्गा सप्तसती अध्याय नवा और दसवा :

एक बार शुम्भ निशुम्भ नामक पराक्रमी दैत्यों से तीनो लोको में आतंक था । दुखी देवता जगमाता गौरी के पास पहुँच कर सहायता की विनती करने लगे । तब गौरी के शरीर से एक कुमारी प्रकट हुई जो शरीर कोष से निकली होने से कौशिकी भी कहलाई , और माता के शरीर से प्रकट होने से मातंगी भी कहलाई । देवताओं को आश्वस्त कर उग्रतारा देवी सिंह पर स्वर हो कर हिमालय के शिखर पर पहुँच कर तीव्र हुंकार भरी |

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शुम्भ निशुम्भ के दो सेवकों – चंड और मुंड ने उस रूपवती और ऐश्वर्य से संपन्न अम्बिका को देखा और अपने स्वामी के पास जाकर उस देवी के साथ विवाह का प्रस्ताव रख दिया |इतनी सुन्दर कन्या से शुम्भ निशुम्भ विवाह के लिए तैयार हो चूका था अत: उसने अपने दूत को उस देवी के पास हिमालय भेजा |
पहले दूत धूम्रलोचन का वध हुआ जब उसने महाशक्ति की अवेहलना की | फिर उसके आये चण्ड मुण्ड का वध माँ चामुंडे ने किया उसके बाद रक्तबीज का नाश महाकाली ने किया | अंत में दोनों भाई शुम्भ और निशुम्भ ने जब अपने महान शक्तिशाली दैत्यों का संहार होते देखा तब उन्हें ही युद्ध के लिए माँ भगवती के पास पर्वत पर आना पड़ा | शुम्भ ने अपने भाई निशुम्भ को आदेश दिया की तुम जाकर उस स्त्री को मेरे समक्ष पेश करो | आज्ञा पाकर निशुम्भ ने देवी के पास पहुंचा और बोला की हे कोमलवान और रूपवान शरीर से संपन्न युवती क्यों युद्ध के चक्कर में फंसी हो | तुम हमहें समर्प्रित हो जाओ और तुम्हे दैत्यराज की महारानी बना दिया जायेगा |

यह सुनकर देवी ने वाचाल शुम्भ को सीधे सीधे युद्ध के लिए ललकारा | । निशुम्भ ने अपने समस्त शस्त्रों से देवी पर आक्रमण किये पर सभी शास्त्र देवी के सामने तुच्छ साबित हुए | अब देवी ने उसे शक्तिविहीन कर उसका वध कर दिया | अपने भाई के वध के समाचार सुनकर शुम्भ अति क्रोध से देवी चंडिका को लपका | देवी चंडिका ने उसे अपने त्रिशूल से संहार कर दिया और इस तरह शुम्भ और निशुम्भ और उनकी समस्त दैत्य सेना का अंत हुआ | देवताओ को पुनः स्वर्ग की प्राप्ति हुई और देवी माँ के जयकारो से तीनो लोक गुंजायमान हो उठा |

दुर्गा सप्तशती अध्याय : 11

देवताओ द्वारा देवी की स्तुति और उनको वरदान प्राप्ति

शुम्भ निशुम्भ के वध के बाद देवराज इंद्र और अन्य देवता कात्यायनी देवी की स्तुति करने लगे | देवताओ ने स्तुति की , हे माँ जगत धारिणी आप शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली , विश्व की रक्षा करने वाली , बल से परिपूर्ण , मोक्ष दायिनी , विश्व की कारणभूता हो | आपकी सदा ही जय हो | सम्पूर्ण विद्याये आपमें धारण है , आप मंगलदायिनी , कल्याणदायिनी, सर्व सुख दात्री हो | सबसे अग्रणी संकटहरणी जगत माता आपकी जय हो |

इसके साथ साथ देवताओ ने माँ देवी के आयुधो , अस्त्र शस्त्र हाथो में शोभायमान अन्य सभी वस्तुओ की भी प्रसन्नता की | देवी का प्रसन्न होना और देवताओ को वर मांगने के लिए कहना :

हे देवताओ | बोलो तुम्हे क्या वर चाहिए | जो तुम्हारे मन में है वो तुम मुझसे मांग सकते हो |
देवता बोले : हे सर्वेश्वरी आप बस इसी तरह हम पर आये संकट हरती रहो और अपनी कृपा हम पर बनाये रखो |

देवी बोली : भविष्य में यशोदा के गर्भ से अवतरित होउंगी और पुनः शुम्भ निशुम्भ का मैं वध करुँगी | समय के साथ साथ बहूत से अवतार लेकर में तुम्हारे राज को और अन्य लोको को बचाती रहूंगी |

दुर्गा सप्तशती अध्याय :12

देवी चरित्र पाठ का महत्व

देवी का दुर्गा सप्तशती के पाठ पर देवताओ और मनुष्यों को सन्देश :

जो मन को एकाग्रचित करके प्रतिदिन इन स्तुतियो से माँ का स्तवन करता है उसकी सारी बाधा दूर हो जाती है | जो उत्तम म्हात्म्यका का अष्टमी , चतुर्दशी और नवमी को पाठ करेंगे या सुनेंगे उन्हें कोई पाप नही छु पायेगा | ना ही उनके घर में गरीबी न ही प्रेमीजन से विछोय होगा | उन्हें न ही शत्रु , राजा , लुटेरो ,अग्नि और जल से भी कोई भय नही होगा |

इसलिए दुर्गा सप्तशती का पाठ एकाग्रचित होकर करना और सुनना सभी सुखो को देना वाला है |
यह पाठ जिस मंदिर में होता है उसमे माँ रमती है और सदा उनका सन्निधान बना रहता है | माँ भगवती की प्रसन्नता और भी बढ़ जाती है जब बलि , पूजा हवन और श्रंगार के साथ यह पाठ किया जाता है | इसमे वर्णित युद्ध कथा को जानकर व्यक्ति पराक्रमी हो जाता है | बुरे सपनो से निजात और ग्रह शांति में यह पाठ कल्याणकारी है |

पाठ के साथ और क्या क्या करे :

पशु , पुष्प , धुप , दीप, इत्र , अधर्य और उत्तम सामग्रियों से पूजन , ब्रहामण भोज , होम , प्रतिदिन अभिषेक व नाना प्रकार के भोग अर्पण करने से दान करने के साथ जो 1 वर्ष तक यह आराधना करता है उससे माँ अति प्रसन्न होती है |

दुर्गा सप्तशती अध्याय 13

देवी का वरदान राजा सुरथ और वैश्य को

अंत में सभी पूर्व अध्यायों द्वारा देवी की महिमा का रस पान कराने वाले ऋषि ने राजा सुरथ और वैश्य को देविमा की शरण में जाने और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग बताया |

मेधा मुनि के यह वचन सुनकर दोनों ने ऋषिराज को प्रणाम किया और आज्ञा पाकर नदी के तट पर तपस्या को चले गये | वही पर देवी की मिट्टी से मूर्ति बनाकर पुष्प, दीप और हवन से पूजा करने लग गये | वे दोनों अपने रक्त से प्रोक्षित बलि देते हुए 3 वर्षो तक घोर तपस्या की |

इस पर देवी ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिए और वर मांगने की बात कही | राजा ने सांसारिक भोग में आकर पुनः अपना राज्य और अपने शत्रुओ का दमन मांग लिया जबकि वैश्य ने अहंकार और आशक्ति का नाश करने का वरदान माँगा |

देवी ने दोनों को वर प्रदान किये इसके साथ साथ राजा को यह भी वरदान दिया गया की अगले जन्म में वे भगवान सूर्य के अंश से जन्म लेकर इस धरा पर मनु के नाम से विख्यात होंगे | वैश्य को मोक्ष के लिए ज्ञान प्राप्त का वर मिला |

मां दुर्गा मंत्र

यहाँ आप कई प्रकार के माँ दुर्गा के मंत्र पा सकता है जिससे आप कई मुसीबतों से बहार आ सकते है अपने जीवन में। उपयुक्त इच्छा को पूरा करने के लिए –मंत्र
ॐ ह्रींग डुंग दुर्गायै नमः

यह मंत्र सभी प्रकार की सिद्धिः को पाने में मदद करता है, यह मंत्र सबसे प्रभावी और गुप्त मंत्र माना जाता है और सभी उपयुक्त इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति इस मंत्र में होती है। “ॐ अंग ह्रींग क्लींग चामुण्डायै विच्चे “यह देवी माँ का बहुत लोकप्रिय मंत्र है। यह मंत्र देवी प्रदर्शन के समारोहों में आवश्यक है।
दुर्गासप्तशा प्रदर्शन से पहले इस मंत्र को सुनाना आवश्यक है। इस मंत्र की शक्ति : यह मंत्र दोहराने से हमें सुंदरता ,बुद्धि और समृद्धि मिलती है। यह आत्म की प्राप्ति में मदद करता है।

गौरी मंत्र लायक पति मिलने के लिए

” हे गौरी शंकरधंगी ! यथा तवं शंकरप्रिया,
तथा मां कुरु कल्याणी ! कान्तकान्तम् सुदुर्लभं “

दुर्गासप्तशइ के अदबुध मंत्र

सब प्रकार के कल्याण के लिये

“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”

धन के लिए मंत्र

“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥”

आकर्षण के लिए मंत्र

“ॐ क्लींग ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती ही सा,
बलादाकृष्य मोहय महामाया प्रयच्छति “

विपत्ति नाश के लिए मंत्र

“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”

शक्ति प्राप्ति के लिए मंत्र

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

रक्षा पाने के लिए मंत्र

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥

आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मंत्र

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

भय नाश के लिए मंत्र

“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥

महामारी नाश के लिए मंत्र

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिए मंत्र

पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

पाप नाश के लिए मंत्र

हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥

भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिए मंत्र

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

निचे दिए गये लिंकों में आप जानेंगे नवरात्रि से जुडी विशेष बाते :

सभी देवताओ की पूजा माँ दुर्गा की पूजा से

क्या होते है नवरात्रे

कैसे होती है नवरात्रों में कलश स्थापना

माँ का जगराता या जागरण

क्या करे क्या ना करे नवरात्रों में

माँ दुर्गा के 9 रूप और उनकी महिमा

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